महामृत्युंजय पुरश्चरण
मारक ग्रहों की शान्ति, रोगों का, कृत्या का, मारण प्रयोग, आयु पर संकट का नाश
अनुष्ठान विवरण
महामृत्युंजय पुरश्चरण वैदिक तांत्रिक साधना की सर्वोच्च विधि है जो मृत्यु के भय से मुक्ति और दीर्घायु प्रदान करती है। यह अनुष्ठान ऋग्वेद के महामृत्युंजय मंत्र पर आधारित है, जिसे "त्रयंबकं यजामहे" मंत्र के नाम से जाना जाता है।
वैदिक आधार: महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के सूक्त 7.59.12 में मिलता है। यह मंत्र भगवान शिव के रुद्र रूप को समर्पित है और मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का साधन है। पुराणों में वर्णित है कि मार्कण्डेय ऋषि ने इसी मंत्र के बल पर यमराज को पराजित किया था।
तांत्रिक प्रक्रिया: पुरश्चरण का अर्थ है पूर्ण साधना जिसमें निर्धारित संख्या में मंत्र जप, होम, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन शामिल होता है। यह अनुष्ठान मंत्र में दीक्षित और पुरश्चरण सिद्ध साधक द्वारा ही किया जाता है।
लाभ:
- मारक ग्रहों (मंगल, शनि, राहु, केतु) की शान्ति
- गंभीर रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य प्राप्ति
- कृत्या, मारण प्रयोग और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश
- आयु पर संकट का निवारण और दीर्घायु प्राप्ति
- अकाल मृत्यु से रक्षा
- शारीरिक और मानसिक शक्ति में वृद्धि
अनुष्ठान अवधि:
- लघु पुरश्चरण: 21 दिन (₹25,000)
- मध्यम पुरश्चरण: 41 दिन (₹51,000)
- महा पुरश्चरण: 108 दिन (₹1,50,000)
प्रत्येक स्तर पर मंत्र जप की संख्या, होम की संख्या और अन्य क्रियाएं बढ़ती जाती हैं।
पूजा के लाभ
- मारक ग्रहों की शान्ति
- रोगों का नाश
- कृत्या और मारण प्रयोग का नाश
- आयु पर संकट का निवारण
- दीर्घायु प्राप्ति
- अकाल मृत्यु से रक्षा
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